Thursday, August 20, 2009

..... कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

करीब एक साल बाद हम एक बार फिर अलाहाबाद विशवविद्यालय में थे। समय के साथ सब कुछ बदल चूका था. लेकिन शायद कुछ नहीं बदला था। संस्थान की एक एक ईंट जैसे हमसे बातें करना चाहती थी। सभी अपने-अपने बैच के साथियों की तलाश में थे। वहां पहुंचते जैसे पिछले 1 साल जिंदगी से घट गए। वही उस समय का जोश और नौजवानी की तरंग दिल में हिलोरें मार रही थीं। मंच सजा था तो भाषणबाजी भी चालू थी। कुछ तो वाकई माइक के लाल थे। माइक पकड़ा तो छोड़ने के लिए राजी नहीं थे। मन बावला हो रहा था। शरारत करने की लालच जग रही थी। ठीक सामने बैठे थे नए बैच के लड़के। उन्हें इशारे से बताया कि ताली बजा दो, उन बच्चों ने जमकर ताली बजाई, मन तो मेरा भी हु आ कि जमकर ताली बजा दूं पर ऐसा न हो सका. इसी बीच पेट पूजा करने का ऐलान हुआ तो सभी बाहर आए। कुछ को पेट पूजा की जल्दी थी, तो कुछ इस नाते जुट गए कि कहीं खाना खत्म न हो जाए। कुछ लोग खाना तोड़ने में लगे तो कुछ लोग अपने बैच को इकट्ठा करके तस्वीरें खिंचवाने में मशरूफ हो गए। खाने के प्लेट के पास खड़े थे सुनील सर। उनसे मुलाकात हुई, हम सब एक साथ मिले। पैर छुए, उन्होंने हालचाल पूछा। कुछ नया नया सा लग रहा था पहले उपर मीडिया रिसर्च सेल हुआ करती थी लेकिन अब यहाँ कुछ नए कोर्सेस के लिए बिल्डिंग बन रही है हम लोगों के वक्त में नहीं था। अगर किसी की कमी खल रही थी तो वो थे धनञ्जय सर.जो कार्यक्रम में नहीं थे.
सामने ही खाने पीने की वयवस्था थी हम बरबस चल पड़े साथ में थे देवेन्द्र शुक्ल (टीम c वोटर ), अतुल राय (इंडिया न्यूज़) , पंकज सिंह (दैनिक भास्कर ), निमेश ( इंडिया न्यूज़) , विवेक निगम, अभिषेक और शिव त्रिपाठी (अमर उजाला) विनीत त्रिपाठी, सुशील राय और कई अखबारों में अपना अमूल्य समय दे चुके पंकज मिश्र (डीएलये), अंकुर (सीअनइबी) ब्रिजेश, देवेन्द्र और मै खुद श्याम मिश्र(हिंदुस्तान टाईम्स) से और भी हमारे कई साथी जिनका नाम यहाँ नहीं है सब ने खाया पिया और जूनियरों को टिप्स भी दिए.

उसके बाद हम लोगो ने पुरे सेंटर का मुआइना किया. क्लासरूम में भी गए। कुछ भी नहीं बदला था। वो बोर्ड था जहां अखबार की कतरनें लगती थीं। । क्लासरूम के बाहर सुनील सर का रूम था, लेकिन अब उसमें आनंद जी भी बैठते है बगल में था एक और कमरा, जो धनञ्जईसर का होता है इस कमरे के बगल में है कंप्यूटर लैब यहाँ इस कमरे में कुछ अनहोनियां भी हुई थीं। कुछ शरारतें भी हुई थीं। किसके साथ ये शरारतें हुई थीं, किसने की थीं, इसका मैं चश्मदीद था। लेकिन न तब बताया था और न अब बताऊंगा। वो बचपना था, हालांकि हमारे ग्रुप के करीब करीब सभी लोग जानते हैं। इसी बीच बुलावा आ गया परिचय का दौर शुरू हुआ सब से पहले देवेन्द्र सर के बैच से शुरुआत हुई हमरे बैच का भी नम्बर आया हम इसे एक कामयाब बैच के रूप में देख रहे थे
पुराने छात्रों को मंच पर बुलाया जा रहा था। हमारा बैच बढ़ा तो तालियां बजीं। हैवीवेट था, विनम्रता से कहना चाहूंगा कि शायद सबसे कामयाब बैच था। मंच पर परेड हुई, परिचय हुआ, लोगो ने मुझे बोलने के लिए कहा। इस बार माइक का लाल बनने का मौका मिला था। पर बार बार लाइट ही धोक्का दे जा रही थी अपने घर में पहुंचा था, खुशी में डूबा था, इस बीच दौड़ते हाफ्ते पीयूष जी भी पहुच चुके थे आई नेक्स्ट अलाहाबाद के स्टार क्रीम रिपोर्टर जिनकी आज तूती बोलती है.
इससे पहले हम लोग सेंटर के बाहर थे सूरज सर पर था हम लोग रामसिंह की चाय की दुकान की तरफ लिकले । दुकान बंद थी, लेकिन उसके कोने की बेंच हमसे कुछ कह रही थी। शाम 6.30 बजे के बाद अक्सर यहां महफिल जमती थी। दोपहर को गीत गजल की महफिल तो बैठ जाती थी। शर्त ये थी कि कोई पीरियड न हो। 6.30 के बाद वाली महफिल कई बार हसीन हुआ करती थी। सुरा और सुंदरी की महफिल। सुरा (चाय) हम लोगों के पास होती और कई सुंदरियां दिखतीं अपने ब्वाय फ्रेंड से चिपकी हुईं। वैसे भी बड़ी रोमांटिक जगह पर बना हुआ है। प्रेमी जोड़े खूब दिखते थे। हममें से कोई दिलजला नहीं था, बस दूर से आनंद लिया करते थे।
शाम ढल रही थी, लेकिन शायद किसी का मन जाने को नहीं हो रहा था। खूब गप्प मारी गई। पुराने दिनों की यादें ताजा हो गईं। सारी सीमाएं टूटकर पहले ही बिखर चुकी थीं। 1 सालों में दौड़कर जो जहां तक पहुंचा था, वहां था। लेकिन यहां तो हम सब बराबरी पर थे। ये जो घंटे बीते, वहां सिर्फ दोस्ती थी। वही तरंग थी, वही उमंग थी। मन कर रहा था कि काश एक बार और मौका मिलता, काश एक बार फिर से यहां ..................--