Tuesday, May 26, 2009

अपने घर का दर्द

घर से जो बेघर होता है जैसा टूटा सा होता है।
अपना घर अपना होता है बाहरतो बस डर होता है।
जिस घर में एक माँ रहती है वो ही घर बस घर होता है।
कौन भला ऐ कब जाने है कितना डर भीतर होता है।
उसकी मर्जी से दुनिया में जो भी हो वो बेहतर होता है।

वक्त का अहसास

तेज धारो को चीर कर आए हैं,
तब किनारों को देख पाए हैं
वक्त ने जब भी हमें आजमाया है
हमने आगे कदम बढाया है
एक उम्मीद लेके होठो पर
हम गमो में भी मुस्कराए हैं
धीरे धीरे ही सही हम अपने को
रौशनी तक ले के तो आए हैं

Sunday, May 24, 2009

हम भी आपकी दुनिया में

लो हमसे भी नही रहा गया और आपकी तरह हम भी शामिल हो गये ब्लागरों कि दुनिया में