घर से जो बेघर होता है जैसा टूटा सा होता है।
अपना घर अपना होता है बाहरतो बस डर होता है।
जिस घर में एक माँ रहती है वो ही घर बस घर होता है।
कौन भला ऐ कब जाने है कितना डर भीतर होता है।
उसकी मर्जी से दुनिया में जो भी हो वो बेहतर होता है।