Monday, April 11, 2016

गांव में सरकारी स्कूल खुला है

जै कालीमाई
जै बरम बाबा
जै महबीर जी
जै शंकर जी
जै गांव के कुल डीह डांगर की...
गांव का सभत्तर भला हो....
और परधान जी पटकते हैं, स्कूल की चौखट पर नरियल
नरियल खच्च से दू टुकड़ा, गांव में सरकारी स्कूल खुला है
परधान जी बताते हैं एक्को पैसा नाम लिखाई नै लगेगी
किताब डरेस फ्री मिलेगा, दुपहरिया में खाना भी
रोज ..... (छवो दिन अलग-अलग)। गांव वाले खुश हैं
लेडिस टीचर आएगी, गंउवा के लरिके तो आउरै खुश
छुट्टन हिसाब लगाता है बच्चा पीछे तीन सै.... त... एक.. दू... तीन.. चार.. माने ...तीन कम डेढ़ हजार..।  छुट्टन की मेहरारू जोड़ती है तिलेसरी, फुलेसरी, ननकू और छोटुआ....। आज बड़का का मर जाना अखर गया उसे....।
तिलेसरी को समझाती है,  बड़की थाली ले के जाना और खाना बचा के लाना, तुम्हारे बाबू तो छोटुआ को खिलाने के बहाने खा लेंगे। सब खुश है,ं पूरा गांव खुश है, छुट्टन खुश हैं औ छुट्टन का परिवार खुश है।
स्कूल में सब बराबरै हैं। बचई ठाकुर और बड़के पंडित के लरिकन के साथ मेवा धोवी और दुखी लोहार के लरिकनौ पढ़िहैं।
एक साल बीत गए हैं। गांव की नई बात वैसे ही पुरानी हो गयी है
जैसे, बड़का का मर जाना। जैसे परधान जी का स्कूल की चौखट पर नरियल चढ़ाना। बाढ़ के बाद से ही स्कूल, अब छुट्टन, ननकऊ और बैजू का घर है
कक्षा एक में छुट्टन रहता है। दू में ननकऊ औ बरामदे में बैजू....
और प्रिंसिपल ऑफिस में छुट्टन की बकरी दिन-भर लेंड़ी करती है
स्कूल खुलने के हफ्ता भर बाद आयीं थीं, एगो लेडिस टीचर
झक सफेद....।  8-10 लड़कन को गोलिया के चली थी दो दिन क्लास।
टीचर जी  नाक पर रूमाल धरे लट्ठा भर दूर से ही बच्चों को पढ़ाती थी अ... इ.. उ.. ऊ..।
दो दिन बाद फिर-फिर नही आयीं...। सुना है, किसी बड़े घर की हैं। बाप जुगाड़ु हैं। उठा लेती हैं ऊपरे-ऊपरे तनखाह.....। तिलेसरी अब बकरी चरा लेती है फुलेसरी अब खाना बना लेती है। ननकू दिन-भर इधर-उधर घुमता रहता है छोटुआ अब साफ-साफ बोल लेता है। छुट्टन की मेहरारू फिर पेट से है वो फिर से हिसाब लगाता है.....बच्चा पीछे तीन सौ....त ...एक.. दू.. तीन.. चार.. और पांच.. माने..........।