Wednesday, July 8, 2009

भविष्य की हिंदी व हिंदी का भविष्य


आजकल भारत में ‘हिंदी के भविष्य’ को लेकर बहुत सी परिचर्चाएं, गोष्ठियों व कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है।
अपनी मात्रि भाषा को लेकर हम भारतीयों में जो गर्व, जो उत्साह होना चाहिए उसकी बहुत कमी है। हम हिंदी के ऩाम पर भाषणबाजी तो खूब करते हैं पर न ही उतना श्रम और न ही उतना कर्म करते हैं । हिंदी की सरकारी दावत तो खूब उड़ाई जाती है पर शिरोधार्य तो अँग्रेजी ही है।
हमारा नेता, हमारा लेखक और बुद्धिजीवी-वर्ग हिंदी की दुहाई तो बहुत देता है परन्तु अपने कुल-दीपकों को अँग्रेजी स्कूलों और विदेशों में ही शिक्षा दिलवाना चाहता है। सच ही कहा गया है की ‘हाथी के दांत, खाने के और दिखाने के और।’
हमें अँग्रेजी बोलने, पढ़ने-लिखने और अँग्रेजियत दिखाने में अपना बड़प्पन दिखाई देता है किंतु सच तो यह है कि यह हमारी मानसिक हीनता ही है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने स्वदेश-प्रेम, स्वभाषा और स्व-संस्कृति की गरिमा पर जोर देते हुए कहा है-
निज भाषा उन्नति अहै; सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।। अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रविन। पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।
अँग्रेजी पढ़िए, जितनी और अधिक भाषाएं सीख सकें सीखें किंतु अपनी भाषा को हीन करके या बिसराने की कीमत पर कदापि नहीं।

6 comments:

  1. saty vachan ........... मैं आपकी बात से itefaak करता हूँ

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  2. umda baat

    uttam vichar.........
    badhai !

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  3. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  4. Aap ki rachana bahut achchhi lagi...Keep it up....

    Regards..
    DevPalmistry : Lines Tell the story of ur life

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  5. हिंदी जो न होती तो न होते वरदायी कवि,
    रासो रच रूरे छंद छप्पय सुनाता कौन ?

    प्रेम परि परखी न होते यदि जायसी तो,
    रूपवती पद्मिनी को नायिका बनाता कौन ?

    होते जो न सूर मीरा तुलसी कबीर कहो ,
    ज्ञान भक्ति कर्म की त्रिवेणी को बहाता कौन ?

    होते जो न भूषन शिवा के रन कौशल को,
    दे के अभिब्यक्ति निगमागम बचाता कौन?

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  6. दिव्य देव वाणी की जो वंश उजियारी बेटी ,
    शौर सेनी व्रज भाषा अवधि प्रमाण है!
    तुलसी कबीर सूर केशव व हरिऔध
    गुप्त न अघाते गाते भक्ति भरे गान हैं !
    देव औ बिहारी घन आनंद श्रृंगार करें
    वीर रस कवि चन्द्रभूषन सामान हैं!
    ऐसी मातु हिंदी गुण आगरी सुनागरी पै,
    भारतीय करते सदैव अभिमान हैं!

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