Sunday, March 21, 2010

भावनाओं को शब्द देने वाला अब दुनिया में नहीं रहा

नवरात्रि के पावन पर्व पर मै माता वैष्णो के दर्शन के लिए जम्मू गया था। लौटते समय दिल्ली में ही पता चला की साहित्य जगत का एक और हीरा साहित्य की अमूल्य स्मृत्यां छोड़ कर सदा के लिए चला गया। ये तो होना ही था जो आया है वो तो जायेगा पर आज साहित्य नगरी प्रयाग का हर कण आज दुखी था। हो भी क्यों न आज इलाहाबाद ने साहित्य जगत का एक और स्तम्भ खो दिया। एक ऐसा सतम्भ जिसने कभी इलाहाबाद छोड़ना नहीं चाहा। हम बात कर रहे है कथाकार मार्कंडेय की। कथाकार मार्कण्डेय का सफर भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन नई कहानी के इस पुरोधा की सोच हमेशा जीवित रहेगी। उनकी रचनाओं का एक-एक शब्द नई पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा। कैंसर से पीड़ित महान कथाकार मार्कण्डेय ने शुक्रवार को दिल्ली में दम तोड़ दिया। इलाहाबाद के एक मित्र से फ़ोन पर बात हुए तो पता चला की उस दिन इलाहाबाद के साहित्यिक गलियारे में ऐसा मार्मिक माहौल था, कि फिजा में घुली हर साँस दुखी थी साहित्य जगत का गलियारा आज सूना था, वहां साहित्यक शब्दों की जगह भावुक स्वर थे। गतिशील समय की तरह लोग मार्कण्डेय की शव यात्रा में शरीक होने के लिए बढ़ रहे थे। दुखी चेहरे भीगी आंखों से शोक व्यक्त कर रहे थे। बड़े-बड़े नाम मार्कण्डेय के साथ अपनी पुरानी यादों को ताजा कर उदास थे। एकांकी कुंज का वह पल फफक-फफक कर बयां कर रहा था कि आम आदमी के संघर्ष, दुख और भावनाओं को शब्द देने वाला अब दुनिया में नहीं रहा।
२ मई १९३० को जौनपुर के बड़ाई गांव में जन्मे कथाकार मार्कंडेय ने प्रेमचंद्र के बाद हिंदी कथा साहित्य में ग्रामीण जीवन को पुनः स्थापित करने का काम किया। उस दिन कोई में उनकी सहज भाषा-शैली और मिलनसार व्यवहार का बखान कर रहे थे तो कोई अपनी संवेदनाएं प्रकट कर रहे थे। कोई पान फूल की बात कर रहा था तो कोई सहज शुभ, हंसा जाए अकेला के बात कर रहा था। हालाँकि बीमारी के कारण डाक्टरों ने उन्हें लिखने और बोलने से मना कर दिया था। लेकिन लेखनी के धनी मार्कण्डेय जी भला कहां मानने वाले थे। बीमारी के बावजूद उन्होंने कई रचनाएं और संपादन कार्य किया। मै शत शत नमन करता हूं ऐसी विभूति को।

2 comments: